राग मलार
लागी मोहिं नाम-खुमारी हो॥
रिमझिम बरसै मेहड़ा भीजै तन सारी हो।
चहुंदिस दमकै दामणी गरजै घन भारी हो॥
सतगुर भेद बताया खोली भरम -किंवारी हो।
सब घट दीसै आतमा सबहीसूं न्यारी हो॥
दीपग जोऊं ग्यानका चढूं अगम अटारी हो।
मीरा दासी रामकी इमरत बलिहारी हो॥
शब्दार्थ :- खुमारी =थकावट, हल्का नशा। मेहड़ा =मेघ, आशय प्रेम की भावना से है। सारी =सारा अंग अथवा साड़ी। भरम-किंवारी =भ्रांतिरूपी किवाड़। दीपग =दीपक जोऊं=जलाती हूं। अटारी =ऊंचा स्थान, परमपद से आशय है। इमरत =अमृत।