Last modified on 16 जनवरी 2010, at 11:03

लाजनि लपेटि चितवनि / घनानंद

लाजनि लपेटि चितवनि भेद-भाय भरी
लसति ललित लोल चख तिरछानि मैं।
छबि को सदन गोरो भाल बदन, रुचिर,
रस निचुरत मीठी मृदु मुसक्यानी मैं।
दसन दमक फैलि हमें मोती माल होति,
पिय सों लड़कि प्रेम पगी बतरानि मैं।
आनँद की निधि जगमगति छबीली बाल,
अंगनि अनंग-रंग ढुरि मुरि जानि मैं।