Last modified on 25 अगस्त 2013, at 09:15

लाजो / शिव शंकर सहाय ‘सिद्धार्थ’

दुःख यातना में टभकत मन
जब कबही रिसोयेला
त्रासदी में सिसकत हिया
फह-फह फफायेला
तब-तब
लाजो
जनम देबेली हमरा के अपना भीतर।
जिनिगी के युद्ध में
जब
हम श्लथ हो जाइला
तब
उनकर प्रेम-अमृत से
सींचाइल हमार जिया
चह-चह हरिआ जाला।
अंकवारी के गरमाहट
देह के मंजर-गंध

उनकर सांसन के तपिश में
सेवात हम
फेरू, जीवंत हो जाइला।

हमरा पतो ना चल पावे कि
लाजो
कब
हमार मतारी बन जाली......