जब चापसिंह सोमवती से मिलता है तो क्या कहता है-
बोलिए मुंह खोलिए हो लिए उरै नै गौरी
लाड़ करूं तेरे रै।टेक
तूं ना लिकड़ी एक बात में भी फिक्की
माथै ला ली रोळी टीकी
नाचणा गाणा किस पै सिखी
आ गी फिरकै, झोळी भरकै करमां कर कै
म्हारे तेरे फेरे मिलेंगे चेहरे रै।
तनै कर दिया शान मेरे पै
जणू चढ़ रहा चमन हरे पै
मेरी ब्याही नजर तेरे पै
टेक कै घा सेक कै देख कै नै रूप गौरी
आऐ होगे मेरे रै।
इस बात में के लहको सै
बीर मर्द का दुःख सुख शामिल हो सै
मेरा एक चीज में मोह सै
बात में, पंचायत में, हाथ में ले हाथ गौरी
साथ लिए फेरे रै।
मेहरसिंह माळा रट हर की
बीर तै शोभा हो सै घर की
तूं ना थी भूखी धन माया जर की
बरकी लहाज, बाज धर्मराज कै आज म्हारै
लागणे थे डेरे रै।
वार्ता- सोमवती की व्यथा कथा सुन कर सभी दरबारी सोमवती को बेकसूर तथा शेरखान को कसूरवार मानते हैं। बादशाह चापसिंह को जेल से निकाल देते हैं तथा शेरखान को फांसी की सजा सुनाते हैं। यह किस्सा यही पर समाप्त होता है।
बोलो नगर खेड़े की जय।