Last modified on 12 मार्च 2010, at 03:30

लालच / बोधिसत्व

कुछ भी अच्छा देख कर ललच
उठता है मन
अच्छे घर अच्छे कपड़े
अच्छी टोपियाँ
कितनों चीज़ों के नाम लूँ
जो भी अच्छा देखता हूँ
पाने को मचल उठता हूँ।
यह अच्छी बात नहीं है जानता हूँ
यह बड़ी घटिया बात है मानता हूँ।
लेकिन कितनी बार मन में आता है
छीन लूँ
सब अच्छी चीज़ें पा लूँ कैसे भी।
अच्छी चीज़ें लुभाती हैं
सदा मुझे
मैं आपकी बात नहीं करता
शायद
आपका मन मर चुका है
शायद
आप का मन भर चुका है।
आप पा चुके वह सब जो पाना चाहते थे
नहीं रही अच्छी चीजों के लिए आपके मन में कोई जगह
कोई तड़प
कोई लालसा आपकी बाकी नहीं नही ।

लेकिन मेरी तृष्णा बुझी नहीं है अब तक
भुक्खड़ हूँ दरिद्र हूँ मैं जन्म का
हूक सी उठती है अच्छी चीज़ों को देख कर
हमेशा कामचलाऊ चीज़ें मिलीं
न अच्छा पहना
न अच्छा खाया
बस काम चलाया
तो अहक जाती नहीं
अच्छे को पाने के लिए सदा बेकल रहता हूँ।
हजार पीढ़ियाँ लार टपकाती मिट गई मेरी
इस धरती से
निकृष्ट चीज़ों से चलता रहा काम
अच्छी चीजें रहीं उनकी हथेलियों के बाहर
पकड़ से दूर रहा वह सब कुछ जो था बेहतर
वे दूर से निहारते सिधार गए
मैं नहीं जाना चाहता उनकी तरह अतृप्त छछाया
मैं खत्म करना चाहता हूँ लालच और अतृप्ति का यह खेल
इसीलिए मैं जो कुछ भी अच्छा है
उसे कैसे भी पाना चाहता हूँ
जिसे बुरा मानना हो माने
मैं लालची हूँ और सचमुच
सारी अच्छी चीज़ें हथियाना चाहता हूँ ।