(मंगलेश दा की याद)
कवि नहीं मरते
वे महज़ ओझल हो जाते हैं
हमारी कमख़ाब नज़रों से
किसी और समय में
किसी और दुनिया में
किसी और बेचैनी में
एक विकल हृदय
एक मुलायम स्वप्न
और एक लपलपाती लालटेन की
सुनहली लौ के बीच
सीने में छुपाए बच्चों-सी तजस्सुस के साथ
एक अनन्त पीले अन्धकार में
दाख़िल हो जाते हैं...
अलविदा प्रिय कवि मंगलेश डबराल !
(1948 - 2020)