किसे कहूँ लाल ?
तुम्हें !
मेरा लाल रँग तो तुम हो !
आज समझ पाया हूँ
सूर्य डूबते-डूबते कैसे
रँगीन कर जाता है
नदी तट से घिरी
वनभूमि को ।
मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी
किसे कहूँ लाल ?
तुम्हें !
मेरा लाल रँग तो तुम हो !
आज समझ पाया हूँ
सूर्य डूबते-डूबते कैसे
रँगीन कर जाता है
नदी तट से घिरी
वनभूमि को ।
मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी