लाल गिरिधर बाग लगायो, प्रीतम पोखरा खनायो
हाँ रे, बाग भीतरे मोर बोले, दादुर शब्द सुनाय हे।।१।।
मासु हे, दुख कासे कहों, राउर बेटा परदेस हे।
खरच माँगत तड़प बोले, बोलत बिरहा बिरोग हे।।२।।
राजा ना बाँ कटाई देबे, रानी ना मन्दिल छवाई हे।
हाँ रे, मन्दिल भीतर सासु सोवे, बहुअर बेनिया डोलाई हे।।३।।
अमुवा पाकल, जमुना पाकल, पाकल बन के खजूर हे,
कुस बिरिदावन दाख पाके, आ मुरुख पियवा विदेस हे।।४।।