नीली पृथ्वी जब तक
असहाय रक्त से लाल होती रहेगी
नीला आकाश भी
सम्वेदना में रक्तिम हो उठेगा
लाल मेघों में उट्ठेगा तूफ़ान
तूफ़ान! डर कैसा दोस्त
हम करोड़ों-करोड़ों ख़ामोश दरख़्त -
तूफ़ान में ही जन्म लेती है हमारी भाषा,
तूफ़ान में ही प्रकट होता है हमारा परिचय।
जानता हूँ, तूफ़ान की प्रचण्डता में टूट जाएँगे हम
फट जाएँगे हमारे हृत्पिण्ड
उसके साथ उखड़ जाएँगे पुराने झाड़-झंखाड़
उड़ जाएगा युग-युगान्तर का कूड़ा-करकट।
डर कैसा दोस्त
हमारी मृत्यु नहीं है
हम सिर्फ़ बदल जाएँगे अणुओं-परमाणुओं में
बिला जाएँगे मिट्टी में
पानी मैदान आकाश में,
हमारी मृत्यु नहीं है,
क्रान्तिकाल के महाझंझावात में सुनोगे
हमारा अट्टहास,
जब तक यहाँ झरेगी रक्त की एक भी बून्द -- आएँगे हम,
जब तक यहाँ झरेगी आँखों से एक भी बून्द -- आएँगे हम।
मूल बँगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी