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लाल मेरी अँगिया न छूऔ / ब्रजभाषा

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

लाल मेरी अँगिया न झूऔ,
तिहारे करूँगी कपोलन लाल॥ टेक
यह अँगिया नाहिं धनुष जनक को,
छुबत टुटौ तत्काल॥ लाल.
नहिं अँगिया गौतम की नारी,
छुबत उड़ी नन्दलाल॥ लाल.
गिरिधर धारि भये गिरधारी,
नहिं जानौ बृजलाल॥ लाल.
जावौ तुम खाबौ सुदामा के तन्दुल,
गैयन के प्रतिपाल॥ लाल.
कहा बिलोकत कुटिल भृकुटि कर,
नाहिं है पूतना काल॥ लाल.
यह अँगिया काली नहिं समझो,
नथ्यौ जाय पाताल॥ लाल.
इतनी सुन मुसकाय साँवरे,
लियौ अबीर गुलाल॥ लाल.
‘सूरश्याम’ मुख मसक छिड़क अंग,
सखियाँ करीं निहाल॥ लाल.