लिखकर रख छोडे हैं,
कुशल समाचारों के पत्र-
ख़ैरियत के ख़त।
उड़ गए हवाओं में
खुशबू वाले रूमाल।
जारज संतानों से
आड़े-तिरछे सवाल;
कतराया, ओढ़े हैं,
धूल के, पसीने के वस्त्र-
बोरियत के ख़त।
और मैं लिखूँ कब तक
जन्म-मरण का हिसाब,
मौसम की खुशहाली
काले-पीले गु़लाब;
शूल-सा मरोड़े हैं
बजट के बहारों के सत्र-
हैसियत के ख़त।
शीत लहर उमस भरे
मार्च फरवरी के दिन,
चंद्र पूर्णमासी के,
चौथ के, हुए वेतन
जितने भी थोड़े हैं
दुर्दिनों, गिरानी के मित्र,
कै़फियत के ख़त।