Last modified on 14 मई 2018, at 16:39

लिखना तो चाहे ये टेसूवन / नईम

लिखना तो चाहे ये टेसूवन
बौराए आम,

लेकिन लिख बैठा मैं सूनापन
बदली की घाम।

मुखर आज हुआ मौन,
समझाए मुझे कौन?
गुर सारे बिसर गए,
भाव चढ़े, उतर गए।

कागद मसि क्या करते!
आखर पानी भरते।
क्षमायाचना कैसी?
घर में ही परदेशी।

करता हूँ प्रेषित कागद कोरे
यादों के नाम।
तुम जो हो एक सुबह सोनाली,
सतरंगी शाम।