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लिखूँ जो आिखरी अपनी कहानी है अभी बाकी / बाबा बैद्यनाथ झा

लिखूँ जो आिखरी अपनी कहानी है अभी बाकी
नहीं बूढ़ा मुझे समझें जवानी है अभी बाकी

अभी तक ग्रीष्म या वर्षा, शरद पतझड़ बहुत देखे
हवा ऋतुराज-बासन्ती सुहानी है अभी बाकी

तजुर्बे की बदौलत ही अभी तक कह सका ग़ज़्लें
मगर कुछ शेष जो यादें पुरानी हैं अभी बाकी

भयानक ठंड दिल्ली की हज़ारों को निगल जाती
हमें हर साल ही ग़ज़्लें सुनानी हैं अभी बाकी

मिली जो है विरासत में वतन को, थी फटी चादर
सलीके से रफू करके सिलानी है अभी बाकी

गड़ाए गिद्ध-सी नज़रें हमारी ओर जो देखे
उसे शमशीर आँखों में चुभानी है अभी बाकी

सियासत दे रही हमको तसल्ली रोज़ वादे की
सुनें इसबार भी बातें लुभानी हैं अभी बाकी

अभी तक नज़्म या ग़ज़लें हजारों में लिखे ‘‘बाबाय्
जिसे सब याद रख पाये निशानी है अभी बाकी