आख़िरकार मैंने देखा पत्नी कितनी यातना सहती है. बच्चे बावले से
घूमते हैं. सगे-संबंधी मुझसे बात करना बेकार समझते हैं. पिता ने सोचा
अब मैं शायद कभी उन्हें चिट्ठी नहीं लिखूंगा.
मुझे क्या था इस सबका पता
मैं लिखे चला जाता था कविता.
(1988)
आख़िरकार मैंने देखा पत्नी कितनी यातना सहती है. बच्चे बावले से
घूमते हैं. सगे-संबंधी मुझसे बात करना बेकार समझते हैं. पिता ने सोचा
अब मैं शायद कभी उन्हें चिट्ठी नहीं लिखूंगा.
मुझे क्या था इस सबका पता
मैं लिखे चला जाता था कविता.
(1988)