जैसे नहीं चाहती रहे कहीं
कोई भी अनचाही छाप
पैरों की कगरी पर सिमटी
झुककर-तिरकर-फिरकर
पूरा सुघर लीपने के जतन में आँगन
धाँग देती फिर से आप
जैसे नहीं चाहती रहे कहीं
कोई भी अनचाही छाप
पैरों की कगरी पर सिमटी
झुककर-तिरकर-फिरकर
पूरा सुघर लीपने के जतन में आँगन
धाँग देती फिर से आप