लुकमान अली के लिए स्वतंत्रता उसके कद से केवल तीन इंच बड़ी है ।
वह बनियान की जगह तिरंगा पहनकर कलाबाज़ियाँ खाता है ।
वह चाहता है कि पाँचवें आम चुनाव में बौनों का प्रतिनिधित्व करे ।
उन्हें टॉफियां बाँटें ।
जाति और भाषा की कसमें खिलाए ।
अपने पाजामे फाड़कर सबके चूतड़ों पर पैबंद लगाए । वह गधे की
सवारी करेगा ।
अपने गुप्तचरों के साथ सारी
प्रजा पर हमला बोल देगा ।
वह जानता है कि चुनाव
लोगों की राय का प्रतीक नहीं, धन और धमकी का अंगारा है
जिसे लोग अपने कपड़ों में छिपाए पानी
के लिए दौड़ते रहते हैं ।
वह आज
नहीं तो कल
नहीं तो परसों
नहीं तो किसी दिन
फ्रिज में बैठकर शास्त्रों का पाठ करेगा।
रामलीला से उसे उतनी चिढ़ नहीं है जितनी
पुरुषों द्वारा स्त्रियों के अभिनय से।
वह उनकी धोतियों के नीचे उभार को देखकर नशा करने लगता है।
वह बचपन के शहर और युवकों की संस्था के उस लौन्डे की याद करने
लगता है। वह अपने स्केट पाँवों में बाँध लेता है।
प्रेमिका के बाल जूतों में रख लेता है। वह अपने बौनेपन में लीन
हो जाता है।
वह तब पकड़ में नहीं आता क्योंकि वह पेड़ नहीं है।
वह पेड़ नहीं है इसलिए लंबा नहीं है।
वह लुकमान अली है : वह लुकमान अली नहीं है।