चम-चम चमक
रही है धूप
गरम हवा की
चलती लूक
भीतर बाहर
आग लगी है
सूख रहा है
खून पसीना
उड़ती है
चौतरफा धूल
रचनाकाल: १६-०६-१९७७, दोपहर : बाँदा
चम-चम चमक
रही है धूप
गरम हवा की
चलती लूक
भीतर बाहर
आग लगी है
सूख रहा है
खून पसीना
उड़ती है
चौतरफा धूल
रचनाकाल: १६-०६-१९७७, दोपहर : बाँदा