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लू / सूर्यकुमार पांडेय

सनन-सनन चलती है लू,
सबको ही खलती है लू।
तेज़ हवा की शैतानी,
सूरज की ग़लती है लू।
मूँग सभी की छाती पर
गर्मी में दलती है लू।
लाल कोयले-सी हर पल,
भट्ठी में जलती है लू।
पेड़-मकानों के तन पर,
गरम धूल मलती है लू।
गर्मी से पलती है लू,
सबको ही छलती है लू।