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लेखनी / विमल राजस्थानी

श्रमिक का पसीना हो कि लोहू देश-दुश्मन का
फैला सहस्र जीभ चाटती है लेखनी
राष्ट्र के विरूद्ध युद्ध धरती का वक्ष क्रुद्ध
शत्रुओं के मुण्डों से पाटती है लेखनी

नेता,अभिनेता या द्यूत का विजेता हो
सब की नकाबों को उलट देती लेखनी
जन - क्रांतियाँ लाती, सभी भ्रन्तियाँ मिटाती है
देश का ललाट - लेख पलट देती लेखनी

चोगद, चपाट, चंट मंत्री बन जाते जो
उनकी जड़ो में तक्र सींच देती लेखनी
शीश-दान करते जो देश पर, तिरगंे पर
उनका जयकार झूम बोलती है लेखनी

भावों का सैेलाब , सागर कल्पनाओं का
युग - युग से कंधों पर ढोती है लेखनी
शिल्प - कली, व्यजंना, प्रतीक के अजस्र सुमन -
तोड़, शब्द - डोर में पिरोती है लेखनी

रातों को हँसाती, पास दिया है न बाती है
फिर भी दिशा - दिशा बाँटती अँजोर लेखनी
ताजमहल कई खडे़ कर देती क्षण भर में
लाखों शाहजहाँ का बटोर लोर लेखनी