दिन, शिवाजी सावंत के
बमुश्किल ख़त्म होने वाले उपन्यास की तरह लम्बे
और रात, नरेश सक्सेना की कविताओं की तरह छोटी-छोटी
अपनी शामें
निर्मल वर्मा की कहानियों की तरह धूप-छांव की
लुकाछिपी में बिताता हुआ
मैं
खुद को सपने में दिखता हूँ
मुक्तिबोध के ब्रह्मराक्षस सा।