Last modified on 16 जुलाई 2008, at 02:34

लोअर परेल / शैलेन्द्र चौहान

धागे पर धागे
धागे पर धागे
कौन सा स्पूल
कोई करघा
वो चरखा
क्या है

बुना

उलझा,
ताना

बाना,
सूत गिरणी कहाँ
झाँकती ईंट-दीवारों से
धुएँदार पस्ती
दशकों से बंद
हलचल
थम चुके चर्चे
बेरोजगारी के
साजिशें फली-फूलीं बहुत
अरबों की सम्पत्ति
धुआँती आकृतियाँ
खो चुकीं वजूद
रेशमी सफेद कुरते में
देवदूत विराजे हैं, अब
यहाँ ।