अपना गीला तौलिया मेज़ पर मत छोडो ।
चलने की तैयारी करने का समय आ गया है ।
क़रीब महीने भर में बीत जायेगा एक और ग्रीष्म ।
कैसा उदास निष्कासन है यह, उतार कर रखना नहाने के सूट को,
धूप के चश्मों, बनियानों, चप्पलों,
चमकते हुए समुद्र की शाम के रंगों को ।
जल्द ही आउटडोर सिनेमा बंद हो जायेंगे, उनकी कुर्सियां
खिसका दी जायेंगी कोने में । नावें पहले से कम
चलने लगेंगी सुन्दर टूरिस्ट लड़कियां सकुशल घर लौटकर
देर रात तक जागेंगी। हमारी नहीं तैराकों, मछुआरों,
मल्लाहों की रंगीन तस्वीरों को उलटती-पुलटती रहेंगी।
पहले से ही दुछत्ती पर रखे हुए हमारे सूटकेस जानना चाहते हैं
कि हम कब जाने वाले हैं, इस बार कहाँ जा रहे हैं
और कितने दिनों के लिए । तुम यह भी जानते हो कि उन घिसे हुए,
खोखले सूटकेसों के भीतर कुछ रस्सियाँ पड़ी हैं,
कुछ रबर बैंड हैं, और कोई झंडा नहीं है ।
अंग्रेज़ी से अनुवाद : मंगलेश डबराल