रास्ते जब नज़र न आएँगे।
लोग पगडंडियाँ बनाएँगे।
खुश न हो कर्ज़ के उजालों से
ये अँधेरे भी साथ लाएँगे।
ख़ौफ़ सारे ग्रहों पे है कि वहाँ
आदमी बस्तियाँ बसाएँगे।
सुनते-सुनते गुज़र गई सदियाँ
मुल्क़ से अब अँधेरे जाएँगे।
जीत डालेंगे सारी दुनिया को
वे जो अपने को जीत पाएँगे।
दूध बेशक पिलाएँ साँपों को
उनसे लेकिन ज़हर ही पाएँगे।