चुप्पी के खिलाफ़
किसी विशेष रंग का झण्डा नहीं चाहिए
खड़े या बैठे भीड़ में जब कोई हाथ लहराता है
लाल या सफेद
आँखें ढूँढती हैं रंगों के अर्थ
लगातार खुलना चाहते बन्द दरवाज़े
कि थरथराने लगे चुप्पी
फिर रंगों के धक्कमपेल में
अचानक ही खुले दरवाज़े
वापस बन्द होने लगते हैं
बन्द दरवाज़ों के पीछे साधारण नज़रें हैं
बहुत करीब जाएँ तो आँखें सीधी बातें कहती हैं
एक समाज ऐसा भी बने
जहाँ विरोध में खड़े लोगों का
रंग घिनौना न दिखे
विरोध का स्वर सुनने की इतनी आदत हो
कि न गोर्वाचेव न बाल ठाकरे
बोलने का मौका ले ले
साथी, लाल रंग बिखरता है
इसलिए बिखराव से डरना क्यों
हो हर रंग का झण्डा लहराता
लोगों के सपने में यकीन रखो
लोग पहचानते हैं आस का रंग
जैसे वे जानते हैं दुखों का रंग
अन्त में लोग ही चुनेंगे रंग।