हर रोज़ सुबह
याद से
रेल की खिड़की से झाँकते
मुसाफिरों की ओर देखकर
अपना हाथ हिलाता है वह
बावज़ूद
पूरी रेल में
उसका अपना कोई नहीं होता।
हर रोज़ सुबह
याद से
रेल की खिड़की से झाँकते
मुसाफिरों की ओर देखकर
अपना हाथ हिलाता है वह
बावज़ूद
पूरी रेल में
उसका अपना कोई नहीं होता।