कवि केदारनाथ सिंह ने कहा-
'जाना / हिन्दी की सबसे खौफनाक क्रिया है'
और लौटना?
जीवन में इस तरह असंगत कि
मैं अपने गाँव में खड़ा हूँ
या जड़ से उखड़े वृक्ष की तरह
धरती पर पड़ा हूँ
लौटा हूँ
जैसे लौटती है चिड़िया अपने घोंसले में
मैं भी लौटा हूँ
चिड़िया को घोंसला न मिले
वह क्या करेगी
पँख फड़फड़ायेगी
चीं चीं के शोर से
आसमान को भर देगी
चोंच मारेगी
अपने को लहूलुहान कर देगी
और क्या कर सकती है वह?
मेरा लौटना उसी की तरह है
अन्तर बस इतना कि वह सुबह गयी
लौटी शाम में
और मैं लौटा चालीस बरस बाद
नदी बहते हुए
अपनी राह आने वाले अवरोध को
कूड़ा कचरा को
लगाती जाती है किनारे
मैं भी लग गया हूँ किनारे
न गाँव था ऐसा
न मैं रहा वैसा
सब हुआ, ऐसा वैसा।