नदी में बहुत बड़ा हो उठा है चाँद
नदी मानो सपना है,
उसके दोनों किनारे टूटते रहते हैं
बड़ी होती है नदी
फन्दे बिछाती है
इंसान सिर्फ़ अकेला रोता रहता है।
ध्यान से देखो
पेड़ के भीतर पत्ते आकर गिरते रहते हैं अविराम ...
जंगल को झाड़ती चलती है हवा
जाना .... इसी तरह चले जाना
लौटना नहीं...।
मूल बँगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी