Last modified on 12 जुलाई 2008, at 12:05

लौटा हूँ आज घर / प्रेमशंकर शुक्ल

लौटा हूँ आज घर

लिए हुए : एक गठरी आकाश

कुछ अधूरे वाक्य

बाज़ार की चकाचौंध से उपजी हत्याशा

दुखते हुए कंधे

और दो आँखें : एक से निहारते हुए होना

छिपाते हुए उदासी दूसरी से।