लौह हथौड़ा हाथ ले, करती चोट कठोर।
चरित "निराला" ने गढ़ा, फैला यश चहुँओर॥
फैला यश चहुँओर, स्वेद से सनी यौवना।
कर्म निरत मुख मौन, क्रिया की सुगढ़ व्यंजना॥
कहती "अनु" अनुतप्त, भूख ने पत्थर तोड़ा।
लेकर कोमल हाथ, नार ने लौह हथौड़ा॥
लौह हथौड़ा हाथ ले, करती चोट कठोर।
चरित "निराला" ने गढ़ा, फैला यश चहुँओर॥
फैला यश चहुँओर, स्वेद से सनी यौवना।
कर्म निरत मुख मौन, क्रिया की सुगढ़ व्यंजना॥
कहती "अनु" अनुतप्त, भूख ने पत्थर तोड़ा।
लेकर कोमल हाथ, नार ने लौह हथौड़ा॥