Last modified on 12 फ़रवरी 2016, at 12:29

लौ के सहारे / निदा नवाज़

वह कह रही थी
हमें ऊपर जाना है
चाँद से भी ऊपर
जहाँ हम एक दूजे के
दुःख-सु:ख बाँटें
जहाँ हमारे सपने
दम न तोड़ें
जहाँ हमारी आकांक्षा
बाँझ न बने
जहां हमारा सम्बन्ध
कंगाल न बने
वह कह रही थी
थकना नहीं
साहस से काम लेना
मैं तुम्हारे साथ रहूंगी
तुम्हारी आशा बनकर
मैं चलता रहा
उसके इस प्रोत्साहन के
दीप की लौ के सहारे
घोर अँधेरे में भी
रास्ता निकालता रहा
जब मैंने उपर
चाँद से भी ऊपर
अपने पीछे देखा
वहां
दम तोड़ते सपने
बाँझ इच्छाएं
थोथे सम्बन्ध
मुझ पर हंस रहे थे
मेरी आशा
पहले ही सोपान पर
टूट चुकी थी
और उसका प्रोत्साहन
पहले सोपान के बीच खड़ा
एक प्रश्न बन गया था।