वक़्त की नदी में
जब सारे सपनों को बहा दिया
तुम कहते हो
मैंने यह क्या किया।
बबूल के
पलाश के
जंगल से गुज़रे जब
यात्रा का हर पड़ाव था
रक्त से लथपथ
पलाश के फूलों में
मैंने लहू मिला दिया
तुम कहते हो
मैंने यह क्या किया
उजाले भी तुम्हारे थे
अंधेरे भी तुम्हारे थे
दीप जब बुझ गये
अंधेरे ही सहारे थे
रातों के निमन्त्रण पर
सुबह को ठुकरा दिया
तुम कहते हो
मैंने यह क्या किया
सदियों से जीते हम
केवल विष पीते हम
अनिश्चित यात्रा में
भावशून्य
रीते हम।
रेत के घरौंदों को
रेत में मिला दिया
तुम कहते हो
मैंने यह क्या किया