Last modified on 8 फ़रवरी 2009, at 21:53

वक़्त रहते / प्रफुल्ल कुमार परवेज़


पहली बार
शहर जाते हुए
उसकी स्मृति में एक निमंत्रण था

बार-बार
जिस जेब में जाता था उसका हाथ
उस जेब में एक पता था
एक टेलिफ़ोन नंबर

स्टेशन के टेलिफ़ोन पर आया जवाब
मिल के ज़रूर जाना भाई वापसी से पहले
वर्ना नाराज़ होंगे ही हम

अचानक याद आई उसे कोठे की अदा
अगली ही गाड़ी से लौटते हुए
उसने मनाया शुक्र
अच्छा रहा
स्टेशन से ही फ़ोन किया