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वक्त / सीत मिश्रा

हमारे बीच ठंडे पड़े रिश्ते में
वक्त ने बहुत कुछ निगल लिया
खामोशियां अब नहीं झकझोरतीं
वीरानी भी दिखाई नहीं देती
हमें इनकी आदत लग चुकी है
हमारी जरूरतमंद चीजों से घर भरा है
सब कुछ भरते-भरते, हममें कुछ खाली हो गया
उस चुके हुए को भरने के लिए
हमने बच्चे पाल लिए हैं
क्या ऐसा भी कभी रहा
जब हम दोनों सिर्फ एक-दूसरे से जुड़े थे
बार-बार हजार बार एक-दूजे में खोकर
खुद को पाने की जद्दोजहद करते
और तृप्त होने के बाद भी चिपटे रहते
अब वो बातें भी बचकानी हो चली हैं
वक्त के साथ गुजर जाता है सबकुछ
लेकिन यादें बनी रह जाती हैं
बचकानी सी।