वक्त है ऐसा कि जैसे इंद्रियों का रक्त है
और मेरी आयु उसमें डूबती-ही-डूबती ही जा रही है।
दर्द ऐसा है कि जैसे काटने का अस्त्र है
और मेरी साँस उससे टूटती ही-टूटते ही जा रही है॥
रचनाकाल: संभावित १९५७
वक्त है ऐसा कि जैसे इंद्रियों का रक्त है
और मेरी आयु उसमें डूबती-ही-डूबती ही जा रही है।
दर्द ऐसा है कि जैसे काटने का अस्त्र है
और मेरी साँस उससे टूटती ही-टूटते ही जा रही है॥
रचनाकाल: संभावित १९५७