वक्त के साथ
सब कुछ बदल जाता है
जगह, चेहरे, सोच
और रिश्ते।
बेमानी हो जाते हैं शब्द¸
चक्रव्यूह से घिर जाती हैं
भीष्म प्रतिज्ञाएँ।
वक्त शिल्पी की तरह
दीवारों पर
खुद उकेरता है
इतिहास।
हम सिर्फ़ देखते हैं
दर्शक की तरह।
और रूपांतर करते हैं
अपनी-अपनी भाषाओं में।
रूपांतर – शब्दों के
रूपांतर – प्रतिज्ञाओं के
जगह, चेहरे, सोच
और रिश्तों के।