Last modified on 16 सितम्बर 2009, at 21:10

वज़न / जयप्रकाश मानस

धरती का वैभव ऊँचाई आकाश की
सूरज की चमक या हो
चंदा की चाँदनी
पूरी भलमनसाहत
सारा-का-सारा पुण्य
समूची पृथ्वी पलड़े में
चाहे रख दो सावजी
डोलेगा नहीं काँटा
रत्ती भर
किसी ने रख दिया है चुपके से
रत्ती भर प्रेम दूसरे पलड़े में