सहसा सुनि पड़ले हुँकड़ै छल धेनु-वत्स भय खाय
बाछा कोनहुँ अनेर जेरमे पैसल अछि गुर्राय
चोख सींघ चलबय खुर नखर लथारहु कत घर्राय
बुझि गेला हरि क्यौ कपटी असुरहि आयल वर्राय
थमह बन्धु-गण! थिक वत्सासुर कपट वेश धय गूढ़
पाप बुद्धिसँ घुसिआयल अछि बुधगण बिच जनु मूढ़
ई लहि दौड़ि पशुक दुहु टाङ पकड़ि फेकल हरि दूर
तरु कपित्थपर खसल छहोछित वत्सासुर भय चूर
मरइत काल रूप निज असुरक सहजहिँ गेल चिन्हाय
वत्सासुर छल पूतनाक अनुजन्मा सोदर भाय
लगले पसरि गेल ई घटना बालकृष्णकेर सत्त्व
नहि साधारण ग्वाल-बाल ई कोनहु दिव्य परत्व