पोर-पोर में दर्द निमोही
एक गीत में बाँधूँ कैसे ?
अपराधी बचपन की सज़ा मिली यौवन को
दया न आई तेरे न्यायाधीश नयन को
बोलो ! वर्तमान के आँसू
अब अतीत में बाँधूँ कैसे ?
अब तो लगता है हर दिन दर्द का जन्म-दिन
हँसी फूल की चुभती है जिस तरह आलपिन
घायल अन्तर का सूनापन
हार-जीत में बाँधूँ कैसे ?