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वर्तमान परिदृश्य में / हरे प्रकाश उपाध्याय

वर्तमान परिदृश्य में

 यह जो वर्तमान है
ताजमहल की ऐतिहासिकता को चुनौती देता हुआ
इसके परिदृश्य में
कुछ सड़कें हैं काली -कलूटी
एक -दूसरे को रौंदकर पार जाती

बालू से भरी नदी बह रही है
पानी है , मगर मटमैला
कुछ साँप हैं फन काढे़ हुए
कुछ नेवले मरे पड़े हैं
जाने कितना खून बिखरा है
जाने किसका है
एक कुत्ता हड्डी चाट रहा है
कुत्ते की बात से
 याद आया वह दृश्य
 जिसमें पत्तलों की छीनाझपटी खेलते थे कुत्ते
यह इस परिदृश्य में
कहीं नहीं हैं

इस परिदृश्य में एक पोस्टर है
 इसमें एक लगभग बीस साल का लड़का
चालीस साल की औरत की नाभि में वंशी डुबाये हुए है
पोस्टर के सामने करीब दस साल का लड़का मूत रहा है
बगल में गदहा खड़ा है

इसकी आँखों में कीचड़
 पैरों में पगहा
और पीठ पर ड़डे के दाग हैं
यह आसमान में थूथन उठाये
कुछ खोज रहा है

सफेदपोश एक
 भाषण दे रहा है हवा में
 हवा में उड़ रही है धूल
वृक्षों से झड़ रही हैं पत्तियाँ
मगर मौसम पतझड़ का नहीं है
परिदृश्य में नमी है

इस परिदृश्य में
 मन्दिर है मस्जिद है
दशहरा और बकरीद है
आमने सामने दोनो की मिट्टी पलीद है

प्रभु ईसा हैं क्रास पर ठुके हुए
महावीर नंगे बुद्ध उदास
गुरू गोविन्द सिंह हैं खड़े
विशाल पहाड़ के पास
यहीं ग़लत जगह पर उठती दीवार है
एक भीड़ है उन्मादी
इसे दंगे का विचार है
सीड़ और दुर्गन्ध से त्रस्त
साढ़े तीन हाथ जमीन पर पसरा
इसी परिदृश्य में
 मैं कविता लिख रहा हूँ।