एक दिन और
गाँठ के आगे का,
खुला हुआ
कोमलता में एक और पंखुरी
उज्ज्वलता में एक और क्षण,
परिपक्वता में एक और भराव-
एक दिन और
फिर उसका,
उसी का
जैसे दिन की शिला पर
उत्कीर्ण हो
सिर्फ़ उसका हरा-भरा नाम
घास से।
एक दिन और
गाँठ के आगे का,
खुला हुआ
कोमलता में एक और पंखुरी
उज्ज्वलता में एक और क्षण,
परिपक्वता में एक और भराव-
एक दिन और
फिर उसका,
उसी का
जैसे दिन की शिला पर
उत्कीर्ण हो
सिर्फ़ उसका हरा-भरा नाम
घास से।