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वर्षान्त / अशोक वाजपेयी

वर्षान्त किसी की प्रतीक्षा नहीं करता
मेरी या तुम्हारी।

हरे-हलके बाँसों से
एक दिन अचानक आ
मुट्ठी से अन्तिम बादल बह जाने देगा।

फिर किसी दिन चौंक कर
देखेंगे हम :
अरे, यह खिड़की पर
इन्द्रधनुष कौन रच गया है,
किसने ये ढेर हरसिंगार ला धरे हैं?

वर्षान्त प्रतीक्षा नहीं करता
मेरी या तुम्हारी या किसी की।


रचनाकाल : 1959