वर्षान्त किसी की प्रतीक्षा नहीं करता
मेरी या तुम्हारी।
हरे-हलके बाँसों से
एक दिन अचानक आ
मुट्ठी से अन्तिम बादल बह जाने देगा।
फिर किसी दिन चौंक कर
देखेंगे हम :
अरे, यह खिड़की पर
इन्द्रधनुष कौन रच गया है,
किसने ये ढेर हरसिंगार ला धरे हैं?
वर्षान्त प्रतीक्षा नहीं करता
मेरी या तुम्हारी या किसी की।
रचनाकाल : 1959