कुछ लड़के बारिश बनकर आते हैं
बादल का छोटा-सा टुकड़ा लिए
बरसने को तत्पर
नीली पोशाक वाले
उद्दंड बूंदों से लड़के!
हरी भरी फूलों से लदी क्यारी-सी गीली सीली लड़की
यूँ निहाल होती है के मानो
जन्मी ही मरुस्थल में हो
के जैसे उसकी पिछली कई पीढ़ियों ने
कभी मेघ का कोई दृश्य नहीं देखा
जबकि, अभी-अभी होकर आई है
पिछली बरसात से,
केवाल मिट्टी-सी वह नम लड़की
क्योंकि मन की देह धंसीली है उसकी
अ-भार छींटों के भी उभर आते हैं अक्षर
इन्ही अक्षरों से सूखे के दिनों के लिए
लिखे गए हैं वर्षा के गीत
जलधर की कामना में जिन्हें गाती हैं
मेरे गाँव की
भींजने को आतुर लड़कियाँ।