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वर्षा और बच्चे / दीनदयाल शर्मा

छटपट-छटपट वर्षा होती,
खटपट-खटपट गिरते ओले।

गली-गली और हर चौराहे,
उधम मचाते बच्चे डोले।

हा-हा हू-हू ही-ही करते,
बच्चों ने मारी किलकारी।

दूर-दूर तक महकी जैसे,
भाँत-भँतीली खुशबू प्यारी।

 वर्षा हुई बंद तो देखा,
इन्द्रधनुष था नभ में प्यारा।

सतरंगी जादू सा लगता,
सबको भाया सबसे न्यारा।।