ऊँडा कुवा मा पलोक पाणी, काइ करि भरूँ रे मेघ बाबा,
ढूडी वो-ढूडी वो।
ऊँडा कुवा मा पलोक पाणी, काइ करि भरूँ रे मेघ बाबा,
ढूडी वो-ढूडी वो।
खुदरा-खलया कुकाइ गुया, लावर्या तितर्या तीस्या मरे,
गाय गोधा भूखा मरे, वरस रे मेघ बाबा,
ढूडी वो-ढूडी वो।
सुपड़ा अतरोक बलावो, चोखा अतरी विजली,
वरस रे मेघ बाबा, ढूडी वो-ढूडी वो।
सुपड़ा अतरोक बलावो, चोखा अतरी विजली,
वरस रे मेघ बाबा, ढूडी वो-ढूडी वो।
गाज ने गुरबो करि रहेगा, विजली हये भला-भल,
वरस रे मेघ बाबा, ढूडी वो-ढूडी वो।
गाज ने गुरबो करि रहेगा, विजली हये भला-भल,
वरस रे मेघ बाबा, ढूडी वो-ढूडी वो।
खयड़े ने बयड़े रेल-छेल पाणी, कमली ना घर पर पाणीं निहिं,
वरस रे मेघ बाबा, ढूडी वो ढूडी वो।
खयड़े ने बयड़े रेल-छेल पाणी, कमली ना घर पर पाणीं निहिं,
वरस रे मेघ बाबा, ढूडी वो ढूडी वो।
- वर्षा नहीं होने से पानी का संकट हो जाता है तो वर्षा हेतु सभी लोग कामना करते हैं। सभी लोग रात्रि में प्रत्येक घर जाकर ढूडी गीत गाते हैं। गीत में कहा है-
कूप गहरा है उसमें पाव भर पानी है, किस प्रकार पानी भरूँ बादल बाबा? नाले सूख गये हैं, लावा व तीतर पक्षी प्यासे मर रहे हैं, गाय-बछड़े भूखे मर रहे हैं, मेघ (बादल) बाबा बरसो। सूप के समान छोटा बादल हो रहा है उसमें चावल के समान बिजली चमक रही है, हे बादल! बरसो। गर्जना हो रही है, बिजली खूब चमक रही है, हे मेघ! बरसो छोटी पहाड़ियों व जंगल में पानी खूब बरस रहा है। कमली के घर पर पानी नहीं है, हे बादल! बरसो।
इस प्रकार प्रत्येक घर पर जाते हैं। गीत गाते समय किसी लड़के को बोपिया, लेचका, ढुचक्या व लड़कियों में से किसी को कोयल बनाते हैं। ये नामधारी पक्षी गीत के साथ उन पक्षियों की मधुर आवाज निकालते हैं। जिनके घर जाते हैं उस घर की महिला सूपड़े में पानी लेकर ढूडी वालों पर उछालती है। सभी घर से
अनाज दिया जाता है।
प्रातः एकत्रित अनाज को पिसाते हैं और नदी-नाले के किनारे सभी जाकर मक्का के पान्ये बनाते हैं। एक लड़का हाथ में पान्या लेकर खड़ा रहता है और एक लड़का पानी में डूबता है। बाहर पान्या लिया हुआ लड़का उसके डूबते ही पान्या खाना प्रारम्भ करता है और जब तक वह पानी से बाहर न निकले तब तक पान्या खा जाता है, तो पानी आने का शुभ शगुन मानते हैं। अगर डूबने वाला लड़का पान्या खाने के पूर्व निकल आता है तो पानी देर से आता है- ऐसी मान्यता है। फिर सभी उपस्थित लोग दाल-पान्या खाते हैं।