पहली असाढ़ की सन्ध्या में नीलांजन बादल बरस गये।
फट गया गगन में नील मेघ
पय की गगरी ज्यों फूट गयी
बौछार ज्योति की बरस गयी
झर गयी बेल से किरन जुही
मधुमयी चाँदनी फैल गयी किरनों के सागर बिखर गये।
आधे नभ में आषाढ़ मेघ
मद मन्थर गति से रहा उतर
आधे नभ में है चाँद खड़ा
मधु हास धरा पर रहा बिखर
पुलकाकुल धरती नमित-नयन, नयनों में बाँधे स्वप्न नये।
हर पत्ते पर है बूँद नयी
हर बूँद लिये प्रतिबिम्ब नया
प्रतिबिम्ब तुम्हारे अन्तर का
अंकुर के उर में उतर गया
भर गयी स्नेह की मधु गगरी, गगरी के बादल बिखर गये।