बादल गरजे, बरसा पानी,
डब्बू जी ने छतरी तानी ।
बिजली चमकी चम-चम-चम,
बरसे बादल झम-झम-झम ।
कपड़े भीगे, भीगे बस्ते,
नज़र नहीं आते रस्ते ।
बाहर पानी, भीतर पानी,
भीग रहे हैं रिंकू - रानी ।
नदिया ने तट तोड़ दिए हैं,
लोगों ने घर छोड़ दिए हैं ।
हरे-भरे थे खेत हमारे,
काटे नदिया ने वे सारे ।
घास - पात, मिट्टी - पत्थर,
फ़सलें डूबी, डूबे हैं घर ।
मूली - गाजर, पालक- मेथी,
आलू - गोभी, चौपट खेती ।
टूटी सड़कें, डूबे उपवन,
जैसे ठहर गया हो जीवन ।
उफन रही नाराज़ नदी,
गुस्से में है आज नदी ।
बड़ी तबाही लाई बाढ़,
अबके ऐसी आई बाढ़ ।