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वर्षा बीती / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

वर्षा बीती धूप खिली
लगती कितनी भली भली
धरती अब भी गीली है
चीजे सीली-सीली हैं
सूरज पानी सोखेगा
गीलापन भी छूटेगा
हरियाली अब आयेगी
खुशहाली भी लायेगी
ढेरों फूल खिलाये भी
जगती को महकाये भी
हम सौ पेड़ लगायेंगे
पर्यावरण बनायेंगे।