वर्षा में भीगकर
सहज सरल हो गया,
गल गईं सारी क़िताबें
मैं मनुष्य हो गया।
खाली-खाली था
जीवन ही जीवन हो गया,
मैं भारी-भारी
हल्का-हल्का हो गया।
बरस रही हैं बूंदें
इनमें होकर
ऊपर को उठा
लपक कर तना
पानी का पेड़
आसमान हो गया
वर्षा में भीगकर
मैं महान् हो गया।
रचनाकाल : 01.08.1980