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वलिवेदीक विभूति / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

बलिदानक वेदीपर की हम फूल चढ़ायब जाय?
मगोत्रीक स्रोतकेँ की पुजि होयत शीत चटाय?
जनिक ज्योतिसँ परधीनता निशा - तिमिर संहार-
अंबरमणिकेँ की कहुँ चीन्हब माटिक दीप जराय?1।।
रजधानी देहली बिरल अविरल दृग यमुना-कूल
राजघाटकेर बाट - बाटमे साखी एखनहुँ धूल
तिलतिल जे होमल कोमल जीवन पलपल अविकार-
तनिक चरणरज शीश नबायब वलिवेदी समतूल।।2।।
क्यौ कहइछ, गाँधी छल आँधी तृणपर्णहु झरि गेल
सहजहिँ एहि झंझाक झोंकमे पाप ताप उड़ि गेल
क्यौ बजइछ, प्रकृतिक परिवर्तन स्वाभाविक संसार
क्यौ बुझइछ दबाब भूगर्भक कंपित भूतल भेल।।3।।
सब बजइत अछि, मलयपवन ओ चन्दन शीत सुगन्ध
गाँधी मधुवसन्त नवयुगकेर जनचेतना निबन्ध
नव स्वातन्त्र्य रसाल मंजरित भारत उपवन हार-
गणतंत्रक कोकिल कलरव सुनि सकलहुँ जनि’ बल हंत।।4।।
क्यौ क्रान्तिक मशाल लय दौड़य नारा लगा अधीर
क्यौ द्वन्द्वक छंदहिमे गाबय, क्यौ उठबय शमशीर
किन्तु कण्ठमे गीता, करमे चर्खा - चक्र चलाय -
अर्धनग्न योगी सहजहिँ बन्धन काटल गम्भीर।।5।।
भारत गगनक रवि शशि वा नक्षत्र बनथु क्यौ व्यक्ति
ज्योतिपुंज नीहारिकाक छथि बिन्दु-बिन्दु अभिव्यक्ति
एखनहुँ जनि’ बल-संबल लय जन-गण-मन मंत्रोच्चार-
तनिक स्मरा जागरा कराबओ अमृतपुत्रमे शक्ति।।6।।
जनिक सत्यसँ ‘सत्यमेव जयते’क प्रतीक प्रकाश
जनिक अहिंसामे विश्वक भविष्य कल्याण विकास
शान्ति क्रान्तिमय, क्षमा शक्ति लय, व्यवहारी सिद्धांत
भारतमाताकेर सपूत बापू पद पूत प्रकाश।।7।।
त्याग-तपक बल स्वयं बनल जे निर्बलकेर बलराम
रामराज्यकेर सपना अपनाओल जे मन अभिराम
जन-जनमे आत्मा महान् एखनहुँ छथि व्यापित भेल-
बलिदानीक आत्मबल गाथा इतिहासक विश्राम।।8।।
हिंसा-त्रस्त ग्रस्त अणु-अणु आयुधसँ अस्त-व्यस्त
कूट कपट ओ द्रोह लपटसँ आकुल विश्व समस्त
दिल्ली राजघाटकेर बाटक बाकुट माटि उठाय-
बाँटय चललहुँ सत्य अहिंसा शान्तिक एक उपाय।।9।।
श्रद्धांजलिक सहस्र धारमे हमरहु बिन्दु कनेक
वलिदानक प्रशस्ति गाथामे हमरहु ई स्वर एक
बापूकेर स्मृतिमालामे गाँथय चललहुँ पद क्षुद्र-
वलिवेदीक विभूति भूति देशक बढ़वओ शुभ टेक।।10।।