फर्क नहीं पड़ता...
मेरे कहने से, तुम्हें जाना ही होगा...
अपने लिए देखने और महसूसने को
कि शहरों की चोटी पर पर्वतों के साए
और नन्हीं सी जानों के बीच बहती नदी
तमन्नाएँ दिलों के घर में रहती हैं
और रह रह रूप बदलते हैं...
हाँ सच है की बसंत आने को है...
मेघ, सरगोशी और गमगीन खामोशी में...
इस से पहले की बहती हवा पेड़ों से सरसराती निकले
और पुरानी धूसर छतों पे जाके मचले...
तुम्हारे लब्जों में रंग और रवानी
दोनों खिल उठेंगे...
और रंग चढ़ेगा हाथों पर मरहम का, इनायत का...
लेकिन सोच करवट लेगी
शायद जिंदगी के माने बदल जाएँ
कुछ ऐसे कि जिंदगी झाँकेगी आँखों से
और निर्ममता से धो देगी
दिल के सारे मेल पुराने...
और रह रह कर खोलेगी
नए सिरों से मुहाने...
क्या मिल सकेगी राह तुम्हें?
क्या पहुँच पाओगे लक्ष्य तक
जो कि तुम खुद हो
अँग्रेज़ी से अनुवाद : गौतम वसिष्ठ